जैन समाज में कविता का महत्व प्राचीन काल से रहा हैं. अधिकांश धार्मिक ग्रन्थ काव्य में ही लिखे गए हैं. आरम्भ से ही सौरभ सुमन एवं अनामिका अम्बर ने अपने अपने स्थान पर रहकर धार्मिक शिक्षा ग्रहण की. जैनोपाध्याय श्री ज्ञान सागर जी महाराज द्वारा आहूत जैन कवि संगोष्ठी में पहली बार दोनों आपस में मिले. फिर जैन मंचो से ही दोनों ने अपने काव्य-जीवन को विस्तार दिया. धीरे-धीरे दोनों ने हिंदी काव्य मंचो पर अपनी पहचान बना ली.
श्रवणबेलगोला (कर्णाटक) में हुए भगवान् बाहुबली के महा-मस्तकाभिषेक के दौरान हुए अखिल भारतीय जैन कवि सम्मलेन में दोनों ने सपरिवार शिरकत की. वहीँ दोनों के परिवारों ने एक होने का मन बना लिया और उसी वर्ष (15 dec 2006) दोनों का विवाह जैन विधि के अनुसार हो गया.
आज भी जैन मंचो पर दोनों की उपस्थिति अनिवार्य बनी हुई हैं. उनकी हर कविता में जैन धर्म की शिक्षा मिल ही जाती हैं. यहाँ दोनों की कलम से निकली कुछ कवितायेँ प्रस्तुत हैं.
Wednesday, July 30, 2008
मुक्तक
वर्तमान में तपस्या के मध्यम से ख़ुद को तपने वाले संतो को समर्पित:
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